राजपूतों का इतिहास !! आइये जानते हैं !


राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल। यह नाम राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजस्थान में राजपूतों के अनेक किले हैं। दहिया, राठौर, कुशवाहा, सिसोदिया, चौहान, जादों, पंवार आदि इनके प्रमुख गोत्र हैं। राजस्थान को ब्रिटिशकाल मे राजपूताना भी कहा गया है। पुराने समय में आर्य जाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी, किन्तु बाद में इन वर्णों के अंतर्गत अनेक जातियाँ बन गईं। क्षत्रिय वर्ण की अनेक जातियों और उनमें समाहित कई देशों की विदेशी जातियों को कालांतर में राजपूत जाति कहा जाने लगा। कवि चंदबरदाई के कथनानुसार राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ। राजपूतों में मेवाड़ के महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान का नाम सबसे ऊंचा है।

अनुक्रम 




राजपूतों की उत्पत्ति
राजपूतों का योगदान  
इतिहास 
भारत देश का नामकरण 
राजपूतोँ के वँश  
राजपूत जातियो की सूची 
Bulleted list item  
राजपूत शासन काल
राजपूतों की उत्पत्ति



                       इन राजपूत वंशों की उत्पत्ति के विषय में विद्धानों के दो मत प्रचलित हैं- एक का मानना है कि राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी है, जबकि दूसरे का मानना है कि, राजपूतों की उत्पत्ति भारतीय है। 12वीं शताब्दी के बाद् के उत्तर भारत के इतिहास को टोड ने 'राजपूत काल' भी कहा है। कुछ इतिहासकारों ने प्राचीन काल एवं मध्य काल को 'संधि काल' भी कहा है। इस काल के महत्वपूर्ण राजपूत वंशों में राष्ट्रकूट वंश, दहिया वन्श, चालुक्य वंश, चौहान वंश, चंदेल वंश, परमार वंश एवं गहड़वाल वंश आदि आते हैं।



                       विदेशी उत्पत्ति के समर्थकों में महत्वपूर्ण स्थान 'कर्नल जेम्स टॉड' का है। वे राजपूतों को विदेशी सीथियन जाति की सन्तान मानते हैं। तर्क के समर्थन में टॉड ने दोनों जातियों (राजपूत एवं सीथियन) की सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति की समानता की बात कही है। उनके अनुसार दोनों में रहन-सहन, वेश-भूषा की समानता, मांसाहार का प्रचलन, रथ के द्वारा युद्ध को संचालित करना, याज्ञिक अनुष्ठानों का प्रचलन, अस्त्र-शस्त्र की पूजा का प्रचलन आदि से यह प्रतीत होता है कि राजपूत सीथियन के ही वंशज थे।



                          विलियम क्रुक ने 'कर्नल जेम्स टॉड' के मत का समर्थन किया है। 'वी.ए. स्मिथ' के अनुसार शक तथा कुषाण जैसी विदेशी जातियां भारत आकर यहां के समाज में पूर्णतः घुल-मिल गयीं। इन देशी एवं विदेशी जातियों के मिश्रण से ही राजपूतों की उत्पत्ति हुई। भारतीय इतिहासकारों में 'ईश्वरी प्रसाद' एवं 'डी.आर. भंडारकर' ने भारतीय समाज में विदेशी मूल के लोगों के सम्मिलित होने को ही राजपूतों की उत्पत्ति का कारण माना है। भण्डारकर, कनिंघम आदि ने इन्हे विदेशी बताया है। । इन तमाम विद्वानों के तर्को के आधार पर निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि, यद्यपि राजपूत क्षत्रियों के वंशज थे, फिर भी उनमें विदेशी रक्त का मिश्रण अवश्य था। अतः वे न तो पूर्णतः विदेशी थे, न तो पूर्णत भारतीय।






राजपूतों का योगदान



क्षत्रियों की छतर छायाँ में ,क्षत्राणियों का भी नाम है |
और क्षत्रियों की छायाँ में ही ,पुरा हिंदुस्तान है |
क्षत्रिय ही सत्यवादी हे,और क्षत्रिय ही राम है |
दुनिया के लिए क्षत्रिय ही,हिंदुस्तान में घनश्याम है |
हर प्राणी के लिए रहा,शिवा का कैसा बलिदान है |
सुना नही क्या,हिंदुस्तान जानता,और सभी नौजवान है |
रजशिव ने राजपूतों पर किया अहसान है |
मांस पक्षी के लिए दिया ,क्षत्रियों ने भी दान है |
राणा ने जान देदी परहित,हर राजपूतों की शान है |
प्रथ्वी की जान लेली धोखे से,यह क्षत्रियों का अपमान है |
अंग्रेजों ने हमारे साथ,किया कितना घ्रणित कम है |
लक्ष्मी सी माता को लेली,और लेली हमारी जान है |
हिन्दुओं की लाज रखाने,हमने देदी अपनी जान है |
धन्य-धन्य सबने कही पर,आज कहीं न हमारा नाम है |
भडुओं की फिल्मों में देखो,राजपूतों का नाम कितना बदनाम है |
माँ है उनकी वैश्याऔर वो करते हीरो का कम है |
हिंदुस्तान की फिल्मों में,क्यो राजपूत ही बदनाम है |
ब्रह्मण वैश्य शुद्र तीनो ने,किया कही उपकार का काम है |
यदि किया कभी कुछ है तो,उसमे राजपूतों का पुरा योगदान है |
अमरसिंघ राठौर,महाराणा प्रताप,और राव शेखा यह क्षत्रियों के नाम है ||
 राजपूतोँ का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। हिँदू धर्म के अनुसार राजपूतोँ का काम शासन चलाना होता है।कुछ राजपुतवन्श अपने को भगवान श्री राम के वन्शज बताते है।राजस्थान का अशिकन्श भाग ब्रिटिश काल मे राजपुताना के नाम से जाना जाता था।



                    हमारे देश का इतिहास आदिकाल से गौरवमय रहा है,क्षत्रिओं की आन बान शान की रक्षा केवल वीर पुरुषों ने ही नही की बल्कि हमारे देश की वीरांगनायें भी किसी से पीछे नही रहीं। आज से लगभग एक हजार साल पुरानी बात है,गुजरात में जयसिंह सिद्धराज नामक राजा राज्य करता था,जो सोलंकी राजा था,उसकी राजधानी पाटन थी,सोलंकी राजाओं ने लगभग तीन सौ साल गुजरात में शासन किया,सोलंकियों का यह युग गुजरात राज्य का स्वर्णयुग कहलाया। दुख की यह बात है,कि सिद्धराज अपुत्र था,वह अपने चचेरे भाई के नाती को बहुत प्यार करता था। लेकिन एक जैन मुनि हेमचन्द ने यह भविष्यवाणी की थी,कि राजा सिद्धराज जयसिंह के बाद यह नाती कुमारपाल इस राज्य का शासक बनेगा। जब यहबात राजा सिद्धराज जयसिंह को पता लगी तो वह कुमारपाल से घृणा करने लगा। और उसे मरवाने की विभिन्न युक्तियां प्रयोग मे लाने लगा। परन्तु क्मारपाल सोलंकी बनावटी भेष में अपनी जीवन रक्षा के लिये घूमता रहा। और अन्त में जैन मुनि की बात सत्य हुयी। कुमारपाल सोलंकी पचपन वर्ष की अवस्था में पाटन की गद्दी पर आसीन हुआ। राजा कुमारपाल बहुत शक्तिशाली निकला,उसने अच्छे अच्छे राजाओं को धूल चटा दी,अपने बहनोई अणोंराज चौहान की भी जीभ काटने का आदेश दे दिया। लेकिन उसके गुरु ने उसकी रक्षा की। कुमारपालक जैन धर्म का पालक था,और अपने द्वारा मुनियों की रक्षा करता था। वह सोमनाथ का पुजारी भी था। राज्य के गुरु हेमचन्द थे,और महामन्त्री उदय मेहता थे,यह मानने वाली बात है कि जिस राज्य के गुरु जैन और मन्त्री जैन हों,वहां का जैन समुदाय सबसे अधिक फ़ायदा लेने वाला ही होगा। राजाकुमारपाल तेजस्वी ढीठ व दूरदर्शी राजा था,उसने अपने प्राप्त राज्य को क्षीण नही होने दिया,राजा ने मेवाड चित्तौण को भी लूटा था,६५ साल की उम्र मे राजा कुमारपाल ने चित्तौड के राजा सिसौदिया से शादी के लिये लडकी मांगी थी,और सिसौदिया राजा ने अपनी कमजोरी के कारण लडकी देना मान भी लिया था। राजा ने यह भी शर्त मनवा ली थी कि वह खुद शादी करने नही जायेगा,बल्कि उसकी फ़ेंटा और कटारी ही शादी करने जायेगी। मेवाड के राजाओं ने भी यह बात मानली थी। एक भांड फ़ेंटा और कटारी लेकर चित्तौण पहुंचा, राजकुमार सिसौदिनी से शादी होनी थी। राजकुमारी ने भी अपनी शर्त शादी के समय की कि वह शादी तो करेगी,लेकिन राजमहल में जाने से पहले जैन मुनि की चरण वंदना नही करेगी। उसने कहा कि वह एकलिंग जी को अपना इष्ट मानती है। उसके मां बाप ने यह हठ करने से मना किया लेकिन वह राजकुमारी नही मानी। रानी ने कुमारपाल की कटारी और फ़ेंटा के साथ शादी की और उस भाट के साथ पाटन के लिये चल दी। मन्जिलें तय होती गयीं और रानी सिसौदिनी की सुहाग की पूरक फ़ेंटा कटारी भी साथ साथ चलती गयी। सुबह से शाम हुयी और शाम से सुबह हुयी इसी तरह से तीन सौ मील का सफ़र तय हुआ और रानी पाटन के किले के सामने पहुंच गयी। राजा कुमारपाल के पास सन्देशा गया कि उसकी शादी हो कर आयी है और रानी राजमहल के दरवाजे पर है,उसका इन्तजार कर रही है। राजा कुमारपाल ने आदेश दिया कि रानी को पहले जैन मुनि की चरण वंदना को ले जाया जाये,यह सन्देशा रानी सिसौदिनी के पास भी पहुंचा,रानी ने भाट को जो रानी की शादी के लिये फ़ेंटा कटारी लेकर गया था,से सन्देशा राजा कुमारपाल को पहुंचाया कि वह एक लिंग जी की सेवा करती है और उन्ही को अपना इष्ट मानती है एक इष्ट के मानते हुये वह किसी प्रकार से भी अन्य धर्म के इष्ट को नही मान सकती है। यही शर्त उसने सबसे पहले भाट से भी रखी थी। राजा कुमारपाल ने भाट को यह कहते हुये नकार दिया कि राजा के आदेश के आगे भाट की क्या बिसात है,रानी को जैन मुनि को के पास चरण वंदना के लिये जाना ही पडेगा। रानी के पास आदेश आया और वह अपने वचन के अनुसार कहने लगी कि उसे फ़ांसी दे दी जावे,उसका सिर काट लिया जाये उसे जहर दे दिया जाये,लेकिन वह जैन मुनि के पास चरणवंदना के लिये नही जायेगी। भाट ने भी रानी का साथ दिया और रानी का वचन राजा कुमारपाल के छोटे भाई अजयपाल को बताया,राजा अजयपाल ने रानी की सहायता के लिये एक सौ सैनिकों की टुकडी लेकर और अपने बेटे को रानी को चित्तौड तक पहुंचाने के लिये भेजा। राजा कुमारपाल को पता लगा तो उसने अपनी फ़ौज को रानी को वापस करने के लिये और गद्दारों को मारने के लिये भेजा,राजा अजयपाल की टुकडी को और उसके बेटे सहित रानी को कुमारपाल की फ़ौज ने थोडी ही दूर पर घेर लिया,रानी ने देखा कि अजयपाल की वह छोटी सी टुकडी और उसका पुत्र राजा कुमारपाल की सेना से मारा जायेगा,वह जाकर दोनो सेनाओं के बीच में खडी हो गयी और कहा कि उसके इष्ट के आगे कोई खून खराबा नही करे,वह एकलिंग जी को मानती है और उसे कोई उनकी आराधना करने से मना नही कर सकता है,अगर दोनो सेनायें उसके इष्ट के लिये खून खराबा करेंगी तो वह अपनी जान दे देगी,राजा कुमारपाल और राजा अजयपाल कापुत्र यह सब देख रहा था,रानी सिसौदिनी ने अपनी तलवार को अपनी म्यान से निकाला और चूमा तथा अपने कंठ पर घुमा ली,रानी का सिर विहीन धड जमीन पर गिरपडा। कुमारपाल और अजयपाल की सेना देखती रह गयी,रानी का शव पाटन लाया गया। रानी के शव को चन्दन की चिता पर लिटाया गया,और उसी भाट ने जो रानी को फ़ेंटा कटारी लेकर शादी करने गया था ने रानी की चिता को अग्नि दी। अग्नि देकर वह भाट जय एक लिंग कहते हुये उसी चिता में कूद गया,उसके कूदने के साथ दो सौ भाट जय एकलिंग कहते हुये चिता में कूद गये,और अपनी अपनी आहुति आन बान और शान के लिये दे दी। आज भी गुजरात में राजा कुमारपाल सोलंकी का नाम घृणा और नफ़रत से लिया जाता है तथा रानी सिसौदिनी का किस्सा बडी ही आन बान शान से लिया जाता है। हर साल रानी सिसौदिनी के नाम से मेला भरता है,और अपनी पारिवारिक मर्यादा की रक्षा के लिये आज भी वहां पर भाट और राजपूतों का समागम होता है। यह आन बान शान की कहानी भी अपने मे एक है लेकिन समय के झकोरों ने इसे पता नही कहां विलुप्त कर दिया है.






भारत देश का नामकरण



                  राजपूतोँ का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। हिँदू धर्म के अनुसार राजपूतोँ का काम शासन चलाना होता है। भगवान श्री राम ने भी क्षत्रिय कुल मेँ ही जन्म लिया था।हम अपने देश को "भारत" इसलिए कहते हैँ क्योँकि हस्तिनपुर नरेश दुश्यन्त के पुत्र "भरत" यहाँ के राजा हुआ करते थे।राजपूतोँ के असीम कुर्बानियोँ तथा योगदान की बदौलत ही हिँदू धर्म और भारत देश दुनिया के नक्शे पर अहम स्थान रखता है। भारत का नाम्,भगवान रिशबदेव के पुत्र भरत च्करवति के नाम पर भारत हुआ(शरइ मद भागवत्) | राजपूतों के महान राजाओ में सर्वप्रथम भगबान श्री राम का नाम आता है | महाभारत में भी कौरव, पांडव तथा मगध नरेश जरासंध एवं अन्य राजा क्षत्रिय कुल के थे | पृथ्वी राज चौहान राजपूतों के महान राजा थे |



                  राजपूतों के लिये यह कहा जाता है कि जो केवल राजकुल में ही पैदा हुआ होगा,इसलिये ही राजपूत नाम चला,लेकिन राजा के कुल मे तो कितने ही लोग और जातियां पैदा हुई है सभी को राजपूत कहा जाता,यह राजपूत शब्द राजकुल मे पैदा होने से नही बल्कि राजा जैसा बाना रखने और राजा जैसा धर्म "सर्व जन हिताय,सर्व जन सुखाय" का रखने से राजपूत शब्द की उत्पत्ति हुयी। राजपूत को तीन शब्दों में प्रयोग किया जाता है,पहला "राजपूत",दूसरा "क्षत्रिय"और तीसरा "ठाकुर",आज इन शब्दों की भ्रान्तियों के कारण यह राजपूत समाज कभी कभी बहुत ही संकट में पड जाता है। राजपूत कहलाने से आज की सरकार और देश के लोग यह समझ बैठते है कि यह जाति बहुत ऊंची है और इसे जितना हो सके नीचा दिखाया जाना चाहिये



 राजपूतोँ के वँश






       "दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण, चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण, भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान, चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमा."



    अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।






सूर्य वंश की दस शाखायें:-



१. कछवाह२. राठौड ३. बडगूजर४. सिकरवार५. सिसोदिया ६.गहलोत ७.गौर ८.गहलबार ९.रेकबार १०.जुनने






चन्द्र वंश की दस शाखायें:-



१.जादौन२.भाटी३.तोमर४.चन्देल५.छोंकर६.होंड७.पुण्डीर८.कटैरिया९.·´दहिया १०.वैस






अग्निवंश की चार शाखायें:-



१.चौहान२.सोलंकी३.परिहार ४.पमार.






ऋषिवंश की बारह शाखायें:-



१.सेंगर२.दीक्षित३.दायमा४.गौतम५.अनवार (राजा जनक के वंशज)६.विसेन७.करछुल८.हय९.अबकू तबकू १०.कठोक्स ११.द्लेला १२.बुन्देला चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-



१.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.भदौरिया ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर



हमारा बुंदेला समाज का संक्षिप्त इतिहास: "कहानी सुरु होती है वीर सिंह बुंदेला के समय से, वीर सिंह बुंदेला ने उस समय के एक महत्वपूर्ण प्रशाशक अब्दुल फज़ल को मार के मुग़ल साम्राज्य का जागीदार बने और उन्होंने १६०५ से १६२७ तक राज्य किये।फिर महाराजा छत्रसाल ने १६४९ से १७३१ तक राज्य किये। उन्होंने मुग़ल साम्राज्य औरन्जेब से लड़ाई लड़ी और अपना साम्रज्य बनाया जिसका नाम था बुंदेलखंड।  मस्तानी उनकी बेटी थी।औरंगजेब जब बुंदेलों को मुस्लिम बनाना सुरु किया तो कुछ झारखण्ड पहुँच गए।औरंगजेब हमलोगो का पीछा करते हुवे यहाँ तक आ गया और उसने झारखण्ड जो उस समय खुकरा के नाम से जाना जाता तो को जीत लिया लेकिन हमलोगो ने हिम्मत नहीं हारी और अपने को मुघलो से बचा कर रख।फिर बुंदेलों को आगे चलकर मराठों का साथ भी मिला। बाजीराव जो एक मराठा थे उनकी मस्तानी से मुलाक़ात बुंदेलखंड मे ही हुवी थी।  बुंदेला राजा ने कुछ हिस्सा बाजीराव को दिया था।  रानी लक्ष्मीबाई एक मराठा थी और उनकी शादी एक बुंदेला राजा से हुवी थी लेकिन जब इनके अडॉप्टेड पुत्र को ब्रिटिश ने राजा मानने से इंकार कर दिया तो रानी ने विद्रोह कर दिया।[To be continued...]



 Raja Rudra Pratap Singh Bundela(1501–1531)
  Raja Bharatichand  Singh Bundela (1531–1554)
  Raja Madhukarshah (1554–1592)
  Raja Vir Singh Deo (Bir Singh Deo) (1592–1627)
  Raja Jujhar  Singh Bundela (1627–1636)
  Raja Devi Singh Bundela(1635–1641)
  Raja Pahar Sing Bundela (1641-1653)
  Raja Sujan Singh Bundela (1653-1672)
  Raja Indramani Singh Bundela 1672-1675)
  Raja Jashwant Singh Bundela 1675-1684)
  Raja Bhagwat Singh Bundela (1684–1689)
  Raja Udwat Singh Bundela (1689–1735)
  Raja Prithvi Singh Bundela (1735–1752)
  Raja Sanwant Singh Bundela (1752–1765)
  Raja Hati Singh Bundela (1765–1768)
  Raja Man Singh Bundela (1768–1775)
  Raja Bharti Singh Bundela (1775–1776)
  Raja Vikramajit Bundela (1776–1817) died 1834.
  Raja Dharam Pal Bundela (1817–1834) died 1834.
  Raja Vikramajit Bundela (restored 1834)
  Raja Tej Singh (1834–1841)
  Raja Sajjan Singh (1841–1854)
  Maharaja Hamir Singh (raja 1854-1865, maharaja 1865-March 15, 1874)
  Maharaja Pratap Singh (June 1874-March 3, 1930) born 1854, died 1830.
  Maharaja Vir Singh (March 4, 1930-acceded January 1, 1950) born






राजपूत जातियो की सूची :






# क्रमांक नाम गोत्र वंश स्थान और जिला





१. सूर्यवंशी भारद्वाज सूर्य बुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ



२. गहलोत बैजवापेण सूर्य मथुरा कानपुर और पूर्वी जिले



३. सिसोदिया बैजवापेड सूर्य महाराणा उदयपुर स्टेट



४. कछवाहा मानव सूर्य महाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य



५. राठोड कश्यप सूर्य जोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा



६. सोमवंशी अत्रय चन्द प्रतापगढ और जिला हरदोई



७. यदुवंशी अत्रय चन्द राजकरौली राजपूताने में



८. भाटी अत्रय जादौन महारजा जैसलमेर राजपूताना



९. जाडेचा अत्रय यदुवंशी महाराजा कच्छ भुज



१०. जादवा अत्रय जादौन शाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा



११. तोमर व्याघ्र चन्द पाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर



१२. कटियार व्याघ्र तोंवर धरमपुर का राज और हरदोई



१३. पालीवार व्याघ्र तोंवर गोरखपुर



१४. परिहार कौशल्य अग्नि इतिहास में जानना चाहिये



१५. तखी कौशल्य परिहार पंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में



१६. पंवार वशिष्ठ अग्नि मालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया



१७. सोलंकी भारद्वाज अग्नि राजपूताना मालवा सोरों जिला एटा



१८. चौहान वत्स अग्नि राजपूताना पूर्व और सर्वत्र



१९. हाडा वत्स चौहान कोटा बूंदी और हाडौती देश



२०. खींची वत्स चौहान खींचीवाडा मालवा ग्वालियर



२१. भदौरिया वत्स चौहान नौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर



२२. देवडा वत्स चौहान राजपूताना सिरोही राज



२३. शम्भरी वत्स चौहान नीमराणा रानी का रायपुर पंजाब



२४. बच्छगोत्री वत्स चौहान प्रतापगढ सुल्तानपुर



२५. राजकुमार वत्स चौहान दियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला



२६. पवैया वत्स चौहान ग्वालियर

२७. गौर,गौड भारद्वाज सूर्य शिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ



२८. वैस भारद्वाज चन्द्र उन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में



२९. गेहरवार कश्यप सूर्य माडा हरदोई उन्नाव बांदा पूर्व



३०. सेंगर गौतम ब्रह्मक्षत्रिय जगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन



३१. कनपुरिया भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय पूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं



३२. बिसैन वत्स ब्रह्मक्षत्रिय गोरखपुर गोंडा प्रतापगढ में हैं



३३. निकुम्भ वशिष्ठ सूर्य गोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर



३४. सिरसेत भारद्वाज सूर्य गाजीपुर बस्ती गोरखपुर



३५ च्चाराणा दहिया चन्द जालोर, सिरोही केर्, घटयालि, साचोर, गढ बावतरा, ३५. कटहरिया वशिष्ठ्याभारद्वाज,           सूर्य बरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर



३६. वाच्छिल अत्रयवच्छिल चन्द्र मथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर



३७. बढगूजर वशिष्ठ सूर्य अनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर



३८. झाला मरीच कश्यप चन्द्र धागधरा मेवाड झालावाड कोटा



३९. गौतम गौतम ब्रह्मक्षत्रिय राजा अर्गल फ़तेहपुर



४०. रैकवार भारद्वाज सूर्य बहरायच सीतापुर बाराबंकी



४१. करचुल हैहय कृष्णात्रेय चन्द्र बलिया फ़ैजाबाद अवध



४२. चन्देल चान्द्रायन चन्द्रवंशी गिद्धौर कानपुर फ़र्रुखाबाद बुन्देलखंड



      पंजाब गुजरात



४३. जनवार कौशल्य सोलंकी शाखा बलरामपुर अवध के जिलों में



४४. बहरेलिया भारद्वाज वैस की गोद सिसोदिया रायबरेली बाराबंकी



४५. दीत्तत कश्यप सूर्यवंश की शाखा उन्नाव बस्ती प्रतापगढ जौनपुर रायबरेली बांदा



४६. सिलार शौनिक चन्द्र सूरत राजपूतानी



४७. सिकरवार भारद्वाज बढगूजर ग्वालियर आगरा और उत्तरप्रदेश में



४८. सुरवार गर्ग सूर्य कठियावाड में



४९. सुर्वैया वशिष्ठ यदुवंश काठियावाड



५०. मोरी ब्रह्मगौतम सूर्य मथुरा आगरा धौलपुर



५१. टांक (तत्तक) शौनिक नागवंश मैनपुरी और पंजाब



५२. गुप्त गार्ग्य चन्द्र अब इस वंश का पता नही है



५३. कौशिक कौशिक चन्द्र बलिया आजमगढ गोरखपुर



५४. भृगुवंशी भार्गव चन्द्र वनारस बलिया आजमगढ गोरखपुर



५५. गर्गवंशी गर्ग ब्रह्मक्षत्रिय नृसिंहपुर सुल्तानपुर



५६. पडियारिया, देवल,सांकृतसाम ब्रह्मक्षत्रिय राजपूताना



५७. ननवग कौशल्य चन्द्र जौनपुर जिला



५८. वनाफ़र पाराशर,कश्यप चन्द्र बुन्देलखन्ड बांदा वनारस



५९. जैसवार कश्यप यदुवंशी मिर्जापुर एटा मैनपुरी



६०. चौलवंश भारद्वाज सूर्य दक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में



६१. निमवंशी कश्यप सूर्य संयुक्त प्रांत



६२. वैनवंशी वैन्य सोमवंशी मिर्जापुर



६३. दाहिमा गार्गेय ब्रह्मक्षत्रिय काठियावाड राजपूताना



६४. पुण्डीर कपिल ब्रह्मक्षत्रिय पंजाब गुजरात रींवा यू.पी.



६५. तुलवा आत्रेय चन्द्र राजाविजयनगर



६६. कटोच कश्यप भूमिवंश राजानादौन कोटकांगडा



६७. चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावत वशिष्ठ पंवार की शाखा मलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड



६८. अहवन वशिष्ठ चावडा,कुमावत खेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी



६९. डौडिया वशिष्ठ पंवार शाखा बुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब



७०. गोहिल बैजबापेण गहलोत शाखा काठियावाड



७१. बुन्देला कश्यप गहरवारशाखा बुन्देलखंड के रजवाडे



७२. काठी कश्यप गहरवारशाखा काठियावाड झांसी बांदा



७३. जोहिया पाराशर चन्द्र पंजाब देश मे



७४. गढावंशी कांवायन चन्द्र गढावाडी के लिंगपट्टम में



७५. मौखरी अत्रय चन्द्र प्राचीन राजवंश था



७६. लिच्छिवी कश्यप सूर्य प्राचीन राजवंश था



७७. बाकाटक विष्णुवर्धन सूर्य अब पता नहीं चलता है



७८. पाल कश्यप सूर्य यह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है



७९. सैन अत्रय ब्रह्मक्षत्रिय यह वंश भी भारत में बिखर गया है



८०. कदम्ब मान्डग्य ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण महाराष्ट्र मे हैं



८१. पोलच भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण में मराठा के पास में है



८२. बाणवंश कश्यप असुरवंश श्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा



       में



८३. काकुतीय भारद्वाज चन्द्र,प्राचीन सूर्य था अब पता नही मिलता है



८४. सुणग वंश भारद्वाज चन्द्र,पाचीन सूर्य था, अब पता नही मिलता है



 ८५. दहिया कश्यप राठौड शाखा मारवाड में जोधपुर



८६. जेठवा कश्यप हनुमानवंशी राजधूमली काठियावाड



८७. मोहिल वत्स चौहान शाखा महाराष्ट्र मे है



८८. बल्ला भारद्वाज सूर्य काठियावाड मे मिलते हैं



८९. डाबी वशिष्ठ यदुवंश राजस्थान



९०. खरवड वशिष्ठ यदुवंश मेवाड उदयपुर



९१. सुकेत भारद्वाज गौड की शाखा पंजाब में पहाडी राजा



९२. पांड्य अत्रय चन्द अब इस वंश का पता नहीं



९३. पठानिया पाराशर वनाफ़रशाखा पठानकोट राजा पंजाब



९४. बमटेला शांडल्य विसेन शाखा हरदोई फ़र्रुखाबाद



९५. बारहगैया वत्स चौहान गाजीपुर



९६. भैंसोलिया वत्स चौहान भैंसोल गाग सुल्तानपुर



९७. चन्दोसिया भारद्वाज वैस सुल्तानपुर



९८. चौपटखम्ब कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर




९९. धाकरे  भारद्वाज(भृगु) ब्रह्मक्षत्रिय आगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर



१००. धन्वस्त यमदाग्नि ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर आजमगढ वनारस



१०१. धेकाहा कश्यप पंवार की शाखा भोजपुर शाहाबाद



१०२. दोबर(दोनवर) वत्स या कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर



१०३. हरद्वार भार्गव चन्द्र शाखा आजमगढ



१०४. जायस कश्यप राठौड की शाखा रायबरेली मथुरा



१०५. जरोलिया व्याघ्रपद चन्द्र बुलन्दशहर



१०६. जसावत मानव्य कछवाह शाखा मथुरा आगरा



१०७. जोतियाना(भुटियाना) मानव्य कश्यप,कछवाह शाखा मुजफ़्फ़रनगर मेरठ



१०८. घोडेवाहा मानव्य कछवाह शाखा लुधियाना होशियारपुर जालन्धर



१०९. कछनिया शान्डिल्य ब्रह्मक्षत्रिय अवध के जिलों में



११०. काकन भृगु ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर आजमगढ



१११. कासिब कश्यप कछवाह शाखा शाहजहांपुर



११२. किनवार कश्यप सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार में



११३. बरहिया गौतम सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार



११४. लौतमिया भारद्वाज बढगूजर शाखा बलिया गाजी पुर शाहाबाद



११५. मौनस मानव्य कछवाह शाखा मिर्जापुर प्रयाग जौनपुर



११६. नगबक मानव्य कछवाह शाखा जौनपुर आजमगढ मिर्जापुर



११७. पलवार व्याघ्र सोमवंशी शाखा आजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर



११८. रायजादे पाराशर चन्द्र की शाखा पूर्व अवध में



११९. सिंहेल कश्यप सूर्य आजमगढ परगना मोहम्दाबाद



१२०. तरकड कश्यप दीक्षित शाखा आगरा मथुरा



१२१. तिसहिया कौशल्य परिहार इलाहाबाद परगना हंडिया



१२२. तिरोता कश्यप तंवर की शाखा आरा शाहाबाद भोजपुर



१२३. उदमतिया वत्स ब्रह्मक्षत्रिय आजमगढ गोरखपुर



१२४. भाले वशिष्ठ पंवार अलीगढ



१२५. भालेसुल्तान भारद्वाज वैस की शाखा रायबरेली लखनऊ उन्नाव



१२६. जैवार व्याघ्र तंवर की शाखा दतिया झांसी बुन्देलखंड



१२७. सरगैयां व्याघ्र सोमवंश हमीरपुर बुन्देलखण्ड



१२८. किसनातिल अत्रय तोमरशाखा दतिया बुन्देलखंड



१२९. टडैया भारद्वाज सोलंकीशाखा झांसी ललितपुर बुन्देलखंड



१३०. खागर अत्रय यदुवंश शाखा जालौन हमीरपुर झांसी



१३१. पिपरिया भारद्वाज गौडों की शाखा बुन्देलखंड



१३२. सिरसवार अत्रय चन्द्र शाखा बुन्देलखंड



१३३. खींचर वत्स चौहान शाखा फ़तेहपुर में असौंथड राज्य



१३४. खाती कश्यप दीक्षित शाखा बुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा



१३५. आहडिया बैजवापेण गहलोत आजमगढ



१३६. उदावत बैजवापेण गहलोत आजमगढ



१३७. उजैने वशिष्ठ पंवार आरा डुमरिया



१३८. अमेठिया भारद्वाज गौड अमेठी लखनऊ सीतापुर



१३९. दुर्गवंशी कश्यप दीक्षित राजा जौनपुर राजाबाजार



१४०. बिलखरिया कश्यप दीक्षित प्रतापगढ उमरी राजा



१४१. डोमरा कश्यप सूर्य कश्मीर राज्य और बलिया



१४२. निर्वाण वत्स चौहान राजपूताना (राजस्थान)



१४३. जाटू व्याघ्र तोमर राजस्थान,हिसार पंजाब



१४४. नरौनी मानव्य कछवाहा बलिया आरा



१४५. भनवग भारद्वाज कनपुरिया जौनपुर



१४६. गिदवरिया वशिष्ठ पंवार बिहार मुंगेर भागलपुर



१४७. रक्षेल कश्यप सूर्य रीवा राज्य में बघेलखंड



१४८. कटारिया भारद्वाज सोलंकी झांसी मालवा बुन्देलखंड



१४९. रजवार वत्स चौहान पूर्व मे बुन्देलखंड



१५०. द्वार व्याघ्र तोमर जालौन झांसी हमीरपुर



१५१. इन्दौरिया व्याघ्र तोमर आगरा मथुरा बुलन्दशहर



१५२. छोकर अत्रय यदुवंश अलीगढ मथुरा बुलन्दशहर



१५३. जांगडा वत्स चौहान बुलन्दशहर पूर्व में झांसी



          महाराणा प्रताप महान राजपुत राजा हुए।इन्होने अकबर से लडाई लडी थी।महाराना प्रताप जी का जन्म मेवार मे हुआ था |वे बहुत बहदुर राजपूत राजा थे।महाराना प्रताप जी का जन्म मेवार मे हुआ था |वे बहुत बहदुर राजपूत राजा थे|



राजपूत शासन काल



शूरबाहूषु लोकोऽयं लम्बते पुत्रवत् सदा । तस्मात् सर्वास्ववस्थासु शूरः सम्मानमर्हित।।
राजपुत्रौ कुशलिनौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ । सर्वशाखामर्गेन्द्रेण सुग्रीवेणािभपालितौ ।।
स राजपुत्रो वव्र्धे आशु शुक्ल इवोडुपः । आपूर्यमाणः पित्र्िभः काष्ठािभिरव सोऽन्वहम्।।
सिंह-सवन सत्पुरुष-वचन कदलन फलत इक बार। तिरया-तेल हम्मीर-हठ चढे न दूजी बार॥
क्षित्रय तनु धिर समर सकाना । कुल कलंक तेहि पामर जाना ।।
बरसै बदिरया सावन की, सावन की मन भावन की। सावन मे उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हिर आवन की।।
उमड घुमड चहुं दिससे आयो, दामण दमके झर लावन की। नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै, सीतल पवन सोहावन की।।
मीराँ के पृभु गिरधर नागर, आनंद मंगल गावन की।।
हेरी म्हा दरद दिवाणाँ, म्हारा दरद न जाण्याँ कोय । घायल री गत घायल जाण्याँ, िहबडो अगण सन्जोय ।।
जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्याँ जण खोय । मीराँ री प्रभु पीर मिटाँगा, जब वैद साँवरो होय ।।



१९३१ की जनगणना के अनुसार भारत में १२.८ मिलियन राजपूत थे जिनमे से ५०००० सिख, २.१ मिलियन मुसलमान और शेष हिन्दू थे।
हिन्दू राजपूत क्षत्रिय कुल के होते हैं। .

                                       
 लेखक:- दुर्गेश कुमार सिंह